भारत में ई-गवर्नेंस





यह सिर्फ हाल ही में हुआ है जब ‘मिनिमम गवर्मेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ के स्वर प्रखर हुए हैं। टेक्नोलॉजी, शासन के भारतीय नज़रिए के हिसाब से परिवर्तन के विचार का केंद्र है। जबकि सरकारी विभागों का कंप्यूटरीकरण प्रगति का पहला संकेत था जो 90 के दशक में देखा गया था, वहीं भारत में ई-गवर्नेंस और भी अधिक नागरिक-केंद्रित होने के लिए, सेवा-उन्मुख होने के लिए एवं पारदर्शी होने के लिए लगातार विकसित हुआ है।

हालाँकि सरकारी सेवाएँ देने के लिए सूचना और संचार प्रद्योगिकी (आईसीटी) को लागू करने पर बल यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों द्वारा दिया गया है लेकिन एनडीए इसके लिए ज्यादा आक्रामक है।

भारत में ई-गवर्नेंस की पहलें

नेशनल ई-गवर्नेंस प्लान (एनईजीपी), जिसका प्रयोजन प्रक्रियाओं के अनुपालन के प्रति सरकार के नज़रिए को बदलना है, हमेशा दो कारकों पर निर्भर करती है: सरकार के भीतर क्षमता निर्माण और नागरिकों के बीच जागरूकता पैदा करना।

यह योजना, जिसे 18 मई 2006 को सरकार की मंजूरी मिल गयी थी, को एक मजबूत नींव बनाने के लिए तैयार किया गया था जिस पर ई-गवर्नेंस का भवन बनाया जा सके। यह 'सही शासन' की आवश्यकता और केंद्र एवं राज्य स्तर दोनों पर महत्वपूर्ण परियोजनाओं के त्वरित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संस्थागत तंत्र, बुनियादी ढांचे और नीतियों की आवश्यकता पर विस्तार से बताती है।

भारत में बड़ी ई-गवर्नेंस परियोजनाएं

प्रशासन और देश के नागरिकों को एकीकृत करने के लिए डिजिटल इंडिया की पहल की गयी। इस पहल के तीन मुख्य घटक हैं: डिजिटल बुनियादी ढांचे का निर्माण, डिजिटल रूप से सेवाएँ देना और डिजिटल साक्षरता सुनिश्चित करना। ग्रामीण भारत को हाई स्पीड इन्टरनेट नेटवर्क से जोड़ने के उद्देश्य के अलावा इसमें यह उद्देश्य भी निहित है कि कागजी काम को कम करते हुए सरकारी सेवाएँ इलेक्ट्रॉनिक रूप से लोगों को उपलब्ध कराई जाएँ।

एम-गवर्नेंस पर मोदी का प्रयास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में सम्बंधित हितधारकों से ‘मोबाइल फर्स्ट’ के बारे में विचार करने के लिए आग्रह किया है, जो उन्हें लगता है कि यह ई-गवर्नेंस के सफल कार्यान्वयन के लिए जरूरी है। मोबाइल गवर्नेंस पर उनके जोर को डिजिटल इंडिया पहल के लिए एक बड़े प्रोत्साहन के रूप में देखा गया है। मोदी ने हाल ही में ‘ट्विटर संवाद’ का भी शुभारम्भ किया था, जो कि एक नयी सेवा है जो पंजीकृत मोबाइल यूज़र्स को प्रतिदिन सरकार के ट्वीट भेजेगी। इस पहल के अनुसार, सरकार की सेवाओं और विकास से सम्बंधित ट्वीट उन लोगों को भेजे जायेंगे जो इस सेवा के लिए पंजीकरण करेंगे।

ई-क्रांति: सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी

आईटी के इस्तेमाल को और अधिक व्यापक बनाने के उद्देश्य से, एनडीए सरकार मोबाइल एप्स के माध्यम से खरीदार-विक्रेता मंचों को एकीकृत करने हेतु इंटरैक्टिव वोइस रेस्पोंस सिस्टम शुरू करने की योजना बना रही है। यह कृषि शासन में मोबाइल फ़ोन को महत्वपूर्ण बनाने के दिशा में एक कदम है। ई-क्रांति के अतिरिक्त आठ अन्य स्तम्भ भी हैं जिन पर डिजिटल इंडिया पहल की नज़रें जमी हुई हैं जिसमें ब्रॉडबैंड हाइवेज, पब्लिक इन्टरनेट एक्सेस प्रोग्राम और डिजिटल वॉलेट शामिल है।

राज्य, जिन्होंने ई-गवर्नेंस को लागू किया है

भूमि परियोजना (कर्नाटक)

कर्नाटक सरकार ने भूमि परियोजना के साथ भूमि के रिकॉर्ड को रखने का तरीका बदल दिया है। भूमि के रिकॉर्डों को डिजिटल रूप में लाने की अवधारणा न केवल पारदर्शिता लेकर आई है बल्कि इसने 6.7 मिलियन किसानों को 20 मिलियन ग्रामीण भूमि के रिकॉर्ड तक सीधे पहुँच मुहैया करवाई है। राज्य भर में 177 कियोस्क के माध्यम से किसानों को अपनी भूमि के विवरण की निर्बाध पहुँच प्राप्त हुई है। इसके अलावा इसने बिचौलियों पर निर्भरता को ख़त्म कर दिया है।

ज्ञानदूत (मध्य प्रदेश)

इस इन्टरनेट आधारित सेवा की पहल की शुरुआत जनवरी 2000 में धार जिले में की गयी थी। इसका उद्देश्य था ग्रामीण आबादी को सम्बंधित जानकारी प्रदान करना। इस पहल ने जिला प्रशासन और लोगों के बीच एक इंटरफ़ेस के रूप में कार्य किया।

लोकवाणी परियोजना (उत्तर प्रदेश)

यह नवम्बर 2004 में शुरू की गयी एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजना थी, जिसका उद्देश्य शिकायतों का समाधान करना, भूमि का रिकॉर्ड रखना और अन्य आवश्यक सेवाएँ प्रदान करना था।

FRIENDS परियोजना (केरल)

FRIENDS (Fast, Reliable, Instant, Efficient Network for the Disbursement of Services) यानी कि सेवाओं के वितरण के लिए फ़ास्ट (तेज), रिलाएबल (विश्वसनीय), इंस्टेंट (तत्काल) और दक्ष नेटवर्क। सबसे लोकप्रिय मानी जाने वाली यह परियोजना नागरिकों को करों के भुगतान के लिए सक्षम बनाती है और सरकार से सम्बंधित आवश्यक लेनदेन के लिए सुगमता प्रदान करती है।


ई-मित्र परियोजना (राजस्थान)

यह परियोजना 2005 से अस्तित्व में है। इसका व्यापक उद्देश्य है सभी सरकारी विभागों से सम्बंधित सेवाओं तक नागरिकों को किसी भी वक्त पहुँच मुहैया करवाना। शहरी और ग्रामीण दोनों नागरिक अपने लेनदेनों के लिए पूर्ण सुरक्षा से आश्वस्त हो सकते हैं। अलग-अलग विभागों के चक्कर काटने के बजाय वे सेवाएँ प्राप्त करने के लिए एक एकीकृत ई-प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर सकते हैं।

ई-सेवा (आन्ध्र प्रदेश)

ई-सेवा एक ऐसा कदम था जिसका उद्देश्य ‘सरकार से नागरिकों को’ और ‘ई-बिज़नस से नागरिकों को’ सेवाएँ उपलब्ध करवाना था। नागरिकों को सभी सेवाएँ उन्हें सम्बंधित सरकारी विभागों से जोड़ करके ऑनलाइन मुहैया करवाई जाती हैं।

COSMOS (छत्तीसगढ़)

यह ऑनलाइन स्कूल निगरानी प्रणाली राज्य के लिए ई-गवर्नेंस में एक बड़ी छलांग थी। यह स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों की उपस्थिति पर ऑनलाइन नजर रखती है और बायोमेट्रिक डिवाइस के माध्यम से ट्रैक करती है। भौगोलिक सूचना प्रौद्योगिकी के अभिनव उपयोग के लिए राज्य को नेशनल ई-गवर्नेंस अवार्ड 2014-15 के लिए चुना गया था। इसने राजीव गाँधी शिक्षा मिशन के अंतर्गत आने वाले विद्यालयों और गांवों के मानचित्र के लिए एक जीआईएस आधारिक वेब एप्लीकेशन विकसित की थी।

ई-गवर्नेंस के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

शहरी-ग्रामीण विभाजन की खाईं के साथ-साथ डिजिटल विभाजन को कम करने के भारत के प्रयासों का ठोस परिणाम अभी भी आना बाकी है। संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट, जो सभी देशों की ई-गवर्नेंस की तैयारियों की स्थिति की जानकारी रखती है, ने भारत को 193 देशों की सूची में 118 वें स्थान पर रखा है। रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि ई-गवर्मेंट डेवलपमेंट इंडेक्स और एक देश की राष्ट्रीय आय के बीच एक मजबूत सह-सम्बन्ध होता है।

एक तरफ सरकारी सेवाओं के लिए वेब आधारित प्रणाली को अपनाने में यूज़र्स की कम संख्या के लिए “परिवर्तन के लिए प्रतिरोधों” को दोष देकर पल्ला झाड़ना आसान है, वहीं दूसरी तरफ दो अन्य चुनैतियां हैं जो अडंगा लगाती हैं। गोपनीयता कानून और डेटा संरक्षण कानून की अनुपस्थिति में, भारत में अधिकांश ई-गवर्नेंस पहलों में विफलता देखी गयी है। दूसरी चुनौती यह है कि भारत सरकार देश में लम्बे समय से चली आ रही कमजोर साइबर सुरक्षा व्यवस्था से इंकार नहीं कर सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, साइबर सुरक्षा के बिना ई-गवर्नेंस सार्थक नहीं है। उनका मानना है कि साइबर सुरक्षा के प्रति अरुचि इस बात की द्योतक है कि भारत में कोई अनिवार्य ई-गवर्नेंस सेवाएँ नहीं हैं।
Last Updated on September 26, 2018