जम्मू-कश्मीर में लोक सुरक्षा अधिनियम





अलगाववादी नेता मसरत आलम, जिसे लोक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत आठ बार हिरासत में लिया गया था, को रिहा करने के जम्मू-कश्मीर सरकार के फैसले पर काफी हंगामा हुआ था। हालाँकि बीच-बीच में अफ्स्पा (सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम) को रद्द करने के लिए आवाजें उठती रही हैं लेकिन इस अधिनियम, जो प्रकृति में कठोर भी है, को हटाने के लिए शायद ही कभी एक मजबूत अपील हुई है। जबकि हम में से ज्यादातर लोग जानते हैं कि किसी व्यक्ति को अदालत के आदेश के बिना अधिकतम दो वर्षों तक सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिया जा सकता है, वहीं ऐसे अन्य दंड प्रावधान भी हैं जिनके बारे में शायद हमें कोई जानकारी नहीं है।

क्या है लोक सुरक्षा अधिनियम, 1978

यह अधिनियम मुख्य रूप से इमारती लकड़ी की तस्करी के खिलाफ कठोर कदम उठाने के लिए सन 1978 में प्रभाव में आया था। इसके काफी समय बाद इस अधिनियम का अक्सर आतंकवाद से संबंधित घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया गया। इस अधिनियम के तहत सरकार किसी भी क्षेत्र को ‘संरक्षित’ क्षेत्र घोषित कर सकती है और उस क्षेत्र में नागरिकों के आवागमन को नियंत्रित कर सकती है। नामित क्षेत्रों में बलपूर्वक प्रवेश का प्रयास मुकदमे को आमंत्रित करता है।

लोक सुरक्षा अधिनियम जम्मू-कश्मीर सरकार को ऐसे किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने की शक्ति देता है जो "सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के खिलाफ किसी भी तरह से प्रतिकूल" कार्य करता हो। अधिक स्पष्ट रूप से कहें तो, यदि कोई भी पुरुष या महिला धर्म, नस्ल, जाति और समुदाय के आधार पर वैमनस्य या घृणा या असामंजस्य की भावनाओं को फ़ैलाने, प्रोत्साहित करने या प्रचार करने का प्रयास करते हुए पाया जाता है/जाती है तो उस व्यक्ति को गिरफ्तार होने के जोखिम का सामना करना पड़ता है। सार्वजनिक व्यवस्था को बनाये रखने की आंड़ में बिना जांच गिरफ़्तारी होती रहती है।

लोक सुरक्षा अधिनियम में किये गए संशोधन

2012 में राज्य विधानसभा में इस अधिनियम के कुछ कठोर प्रावधानों में रियायत बरतते हुए संशोधन किया था।

जाँच से पहले की जाने वाली गिरफ़्तारी की समयावधि को कम किया गया था। पहली बार अपराध करने वाले या वे व्यक्ति जिन्होंने राज्य की सुरक्षा के खिलाफ पहली बार कोई कृत्य किया हो, ऐसे व्यक्तियों के लिए हिरासत की अवधि 2 वर्ष से घटाकर 6 महीने कर दी गयी थी। हालाँकि, अपराधी के आचरण में सुधार न होने की दशा में हिरासत की अवधि को 2 साल तक बढ़ाने का विकल्प खुला रखा गया था।

संशोधन के बाद “सार्वजनिक कानून के खिलाफ किसी भी प्रकार का कृत्य करने वाले” व्यक्तियों की हिरासत के लिए प्रावधान कम कठोर कर दिया गया था। इसके अनुसार, पहली बार अपराध करने वाले व्यक्ति को तीन महीने बाद रिहा किया जा सकता है, हालाँकि इस अवधि को 1 वर्ष तक बढ़ाया भी जा सकता है। उमर अब्दुल्ला सरकार ने इस संशोधन का समर्थन किया था।

इस संशोधन के बाद एक और प्रावधान बनाया गया। इसने नियम पेश किया कि पीएसए के तहत नाबालिगों (18 वर्ष से कम आयु) को हिरासत में नहीं लिया जा सकता है। इसने यह भी अनिवार्य कर दिया कि गिरफ्तार करने वाले प्राधिकारी किसी भी हिरासत का कारण प्रस्तुत करें।

संशोधन के बावजूद सरकार अभी भी राज्य सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के नाम पर लोगों की स्वतंत्रता का हनन करने के लिए पर्याप्त ताकत रखती है।

लोक सुरक्षा अधिनियम की आलोचना

मानवाधिकार समूह इस बात पर एक-मत हैं कि पीएसए की वजह से गलत गिरफ्तारियां होती हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल लम्बे समय से हिरासत में रह रहे लोगों की रिपोर्टों पर आक्रामक रूप से मंथन कर रहा है। अधिकांश हिमायती संगठनों ने कहा है कि राज्य पर्याप्त साक्ष्यों के बिना संदिग्धों को कैद करने के लिए पीएसए का उपयोग करता रहा है। कई निर्दोष लोग राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार बन गए थे क्योंकि यह अधिनियम सत्ताधारी पार्टी को व्यापक शक्ति देता है।

एक अधिकार कार्यकर्ता के अनुसार, जम्मू-कश्मीर “उन लोगों को गलत तरीके से कैद करता है जिन्हें यह उचित कानूनी माध्यम से अपराधी साबित नहीं कर पाता”। इन्हीं सब कारणों के चलते, नागरिकों को उचित जांच और न्याय से वंचित करने के लिए पीएसए की आलोचना की गयी है।
Last Updated on September 26, 2018