भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
भारतीय संविधान में ऐसा कौन सा प्रावधान है जो लोगों को जानवरों की हत्या करने से रोकता है? इस दोष के लिए विभिन्न दंड क्या-क्या हैं?
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारतीय संविधान में ऐसा कौन सा प्रावधान है जो लोगों को जानवरों की हत्या करने से रोकता है? इस दोष के लिए विभिन्न दंड क्या-क्या हैं?
भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
पशु क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम, 1960
पशु क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम, 1960 को इस उद्देश्य से अधिनियमित किया था कि जानवरों को अनावश्यक कष्ट के दंड से न गुजरना पड़े। धारा 11 स्पष्ट करती है कि परिवहन के दौरान किसी भी जानवर को नुकसान पहुंचाना एक अपराध है। इस अधिनियम के तहत खचाखच भरे वाहनों में मवेशियों को बांधना गैर-कानूनी है। और तो और, किसी भी हानिकारक चीज का इंजेक्शन देना और जहरीला खाना परोसना भी गैर-कानूनी है। धारा 11 का ऐसा कोई भी उल्लंघन 100 रुपए या इससे अधिक के अर्थदंड से लेकर तीन महीने की कारावास की सजा को आकर्षित करता है।भारतीय दंड संहिता
भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के मुताबिक, किसी भी जानवर को अपाहिज बनाना या चोट पहुंचाना गैर-कानूनी है। गायों पर तेजाब फेंकने, गली के कुत्तों और बिल्लियों को चोट पहुँचाने जैसे कृत्य भी दंड की परिधि में आते हैं, जो सड़क पर कई लापरवाह चालकों के लिए एक चेतावनी है। कारों द्वारा सड़कों पर कुत्तों, बिल्लियों और गायों को चोट पहुँचाना या मारा जाना भी संहिता के अनुसार गैर-कानूनी है। ऐसे अपराधियों को या तो स्थानीय पशु सुरक्षा समूहों या किसी पुलिस स्टेशन के हवाले कर दिया जाता है और उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया जाता है। दोषी को कम से कम 2000 रुपए का जुर्माना और/या 5 साल तक के कारावास की सजा दी जाती है।जानवरों पर कॉस्मेटिक्स प्रयोग भारत में प्रतिबंधित
2014 में भारत ने जानवरों पर कॉस्मेटिक्स प्रयोग पर राष्ट्रव्यापी बैन लगाया था। यह बैन जानवरों की त्वचा पर रसायनों का इस्तेमाल या उन्हें घातक खुराकें देने को गैर-कानूनी बनाता है। इसके अलावा, कोई भी चिकित्सा या शोध संस्थान प्रयोग के उद्देश्य से भटके हुए पशुओं को सड़क से नहीं उठा सकता है। गैर-कानूनी पशु प्रयोगों, जो जानवरों के लिए ‘पर्याप्त पीड़ा’ का कारण बनते हैं, की रिपोर्ट करने के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन की शुरुआत भी की गयी है।Last Updated on September 26, 2018